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प्रकाशन: एकलव्य
लेखक: सुजाता पद्मनाभन
अनुवाद: सीमा
चित्र: मधुवंती
मूल्य: 65 रु.
बम्बू यह कहानी एक ऐसे गधे के बारे में है जिसे रतौंधी की बीमारी है| यह कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी| कहानी में एक लड़की है पद्मा जो अपने गधे से बहुत प्यार करती है| वह बहुत दुखी होती जब उसके पिता बम्बू को बेच देना चाहते है बस इसलिए के वह उनके कमाई के काम में नहीं आता| जबकि वह उनके लिए खाद को खेतों तक ले जाने और और उसके छोटे भाई को सावरी कराने जैसे कई काम करता था| जैसे ही रात होने लगती है बम्बू कुछ अलग सा व्यवहार करने लगता है और वह अपनी जगह पर स्थिर हो जाता है| उसे इस हालत में देख पद्मा ये महसूस कर पाती है कि इस गधे को कोई न कोई तकलीफ है| यह बात यह एहसास दिलाती है की पद्मा बम्बू से बहुत प्यार करती है| पद्मा की सूझ बूझ और उसके दोस्त के प्रयासों से बम्बू को एक असमान्य बीमारी से उबरने में मदद मिलती है|
जब मैं यह कहानी पढ़ रही थी तो मुझे हेमराज का ख्याल आ रहा था| वो 6 साल का है और हमारे पास वाले मोहल्ले में रहता है| उसे भी रात को रतौंधी आती है और उसकी माँ को ये बात पता नहीं थी| जब एक दिन उसकी माँ ने उसके सामने खाना रख दिया और खाने को कहा तो वह चुपचाप बैठा रहा, उसकी माँ ने उसे एक थप्पड़ लगाया और बोला “सामने खाना रखा है, खाता क्यों नहीं” तो वो एक दम से टटोलने लगा तब उसकी माँ को कुछ समझा आया और उसे पता चला की कुछ मुश्किल है बच्चे के साथ| उसने ये पूरी घटना मुझे बताई थी | पुस्तकालय के अलावा मैं आशा कार्यकर्त्ता का काम भी करती हूँ इस घटना के पता चलते ही हमने हेमराज का इलाज़ शुरू करवा दिया और उसकी माँ भी उसका ज्यादा ध्यान रखने लगी| कहानी पढ़ते हुए बार बार मेरे ख्यालों में हेमराज का चेहरा उभर रहा था|
यह कहानी इस तरह विशेष जरूरत वाले लोगों तक ध्यान ले जाने वाली है इसलिए मुझे यह और भी अच्छी लगी|
कहानी की भाषा सरल है | शुरू से आखिर तक जुड़ाव दिखता पूरी कहानी अच्छे से समझ आती है| कहानी में बीच बीच में अबाले जिसका मतलब है पिता, आमची मतलब माँ, थुकुपा मतलाब हिमालयी नूडल सूप जैसे कुछ अलग शब्द आते हैं जो की लद्दाखी भाषा के हैं| शब्दों का यह प्रोयग एक नई भाषा के झलक दिखता है और यह समझ आता के कहानी लद्दाख की है|
इसके चित्र अच्छे है| कहानी के पात्रों के चेहरे कुछ चीनी लोगों से मिलते हैं, उनकी वेशभूषा एक अलग परिवेश की झलक देते हैं|
ये कहानी बच्चों को भी बहुत अच्छी लगी वो एक तरफ आमची अबाले जैसे शब्द बोलकर मजे कर रहे थे वहीँ वे अपनी भाषा में माँ को और पापा को क्या कहते हैं ये भी बता रहे जैसे पारधी भाषा में माँ को आया, और पिता को बा कहते हैं| अपने आसपास जिन लोगों को दिखाई नहीं देता बच्चों ने उनके बारे में अपने अपने अनुभव भी बताये उनके अनुभव सुनते समय बच्चों की बातों में खास संवेदनशीलता का एहसास हो रहा था|
एक बच्चा तो कह रहा था कि मुझे मेरे पापा हमेशा गधा कहते हैं इसलिए मुझे ये गधे की कहानी बहुत अच्छी लगी|
यह कहानी बच्चों और समुदाय के बीच बहुत उपयोगी होगी क्योंकि अक्सर ही यह देखने को मिलता है कि जब किसी का असामान्य व्यवहार दखते हैं तो मजाक में लेते है यह कहानी बच्चों और समुदाय को संवेदनशील होकर सोचने के लिए प्रेरणा देगी|
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