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आज स्कूल में तीसरी कक्षा के बच्चों को “नाव चली” कहानी सुनाने की मेरी योजना थी, और उसकी पूर्व तैयारी भी मैंने कर ली थी, क्या करना है, क्या सुनाना है या क्या पूछना है, ये सोचते हुए मैं लाइब्रेरी पहुंची – जैसे ही मैं वहाँ पहुंची बच्चों ने बड़े ही उत्साह के साथ मेरा स्वागत किया और पूछा आज कौन सी कहानी आप सुनाएंगी? शायद इतनी जल्दी उत्तर देने के लिए मैं तैयार नहीं थी और महज़ मुस्कुराकर रह गई और उनको बैठने को कहा| फिर मैंने उनको एक बाल गीत सुनाया जो कि कहानी से मिलती जुलती थी – नाव चली, नाव चली ………नाव चली रे, हम सब को लेकर गाँव चली रे ……और इसे सभी बच्चों ने मिलकर गया, काफी उत्साह से, शायद उन्हें बहुत मज़ा आया और उन्होंने एक बार और गाने की ज़िद्द भी करी|
मैंने कहानी शुरू करने से पहले नाव पर थोड़ी चर्चा करने की सोची| इरादा यह था कि कहानी सुनाने से पहले थोड़ा माहौल बनाना अच्छा रहेगा| वैसे तो गीत ने ठीक-ठाक माहौल तैयार कर दिया था| थोड़ी देर नाव पर चर्चा चली – मैंने पूछा “नाव देखी है कभी, क्या बैठे हो नाव पर?” सवाल सपाट सा था, पर उनके उत्तर देने का अंदाज़ मज़ेदार था-
ऋषि ने कहा –“हाँ देखा है, लकड़ी की होती है मेरे गाँव में है, हम इस पार से उस पार जाते है” इतने में हीर भी बोल पड़ी “हाँ मैंने भी देखी है चटाई की नाव गाँव में, और बैठी भी हूँ, बहुत मज़ा आता था”| बात आगे तो बढ़ी उनकी कल्पनाओं ने उफान लेना शुरू किया और विक्की ने बताया कि “हाँ हाँ मैंने भी देखा है मेरे गाँव में भी है और उस नाव में तो एक साथ बीस हज़ार लोग बैठते है”| थोड़ी देर के बाद गीता ने कुछ याद करते हुए बोला कि
”मेरे गाँव में भी था नाव पर अब नहीं है क्यूंकि तालाब सुख गया”I
फिर मैंने एक और सवाल पुछा “क्या तुम लोगों ने कभी नाव बनाया है? अगर बनाया है तो कैसे बनाया है?” एक साथ कई बच्चों ने अपने हाथ उठाये, ऐसा लगा पूरी क्लास ही नाव बनाना जानती हो| कई सारे जवाब आए| जैसे काग़ज से, पत्ते से, पेड़ की टहनियों से…… थोड़ी देर तक यह बातचीत चलती रही, यूँ लग रहा था हर एक अपने इस हुनर को कह करके दर्ज करना चाहता है – और इसी बीच मैंने किताब को हाथ में लिया और अपने हथेली से किताब के शीर्षक को ढक कर बच्चों से पूछा कि इस किताब का शीर्षक क्या हो सकता है| बच्चों ने तस्वीर को देख कर कई तरह के अनुमान लगाएं – चूजे की कहानी, तितली की कहानी, नाव की कहानी, जंगल की कहानी इत्यादि| फिर मैंने शीर्षक से अपना हाथ हटा कर कहानी का नाम बताया और कहानी पढ़ना शुरू किया| बीच में एक दो सवाल किये जैसे – क्या सारे जानवर मिलकर नाव बना पाए होंगे या नहीं? बच्चों ने तुरंत कहा हाँ बना लिया होगा| एक दो बच्चों ने कहा नहीं बना पाए होंगें क्यूंकि इतने छोटे जानवर इतनी बड़ी नाव कैसे बना सकतें है| खैर, बीच में ज्यादा ना रुकते हुए मैंने कहानी पूरी की| कहानी पूरी होते ही बच्चों ने ज़ोरदार तालियाँ बजाई शायद उन्हे कहानी अच्छी लगी| कई बार जब उन्हें कहानी में ज्यादा मज़ा न आये तो वो ताली नहीं बजाते या बड़ी कंजूसी से ताली बजाते हैं|
>कहानी पूरी होने पर मैंने कुछ और सवाल किये जैसे – क्या वो मिलकर काम नहीं करते तो नाव बना पाते? अपने कभी कोई काम समूह में किया है? उनके जवाब कुछ इस तरह के थे: कुछ ने कहा “नहीं बना पाते क्यूंकि नाव बनाने में मेहनत लगती है एक से नहीं होगा”,एक ने कहा “हमने एक बार मिलकर बंडल बनाया था स्कूल में बहुत मज़ा आया था”| दूसरे ने कहा– “नाव बनाना मुश्किल काम नहीं है अकेले बना सकते हैं”|
थोड़ी देर चर्चा के बाद मैंने नाव बनाने की एक गतिविधि कराई| दो-दो बच्चों के जोड़े ने मिलकर कागज़ की एक नाव बनाई| नाव बनाते वक़्त वे आपस में बात करते, एक दूसरे को सुझाव देते- नहीं ऐसे बनेगा कोई कहता नहीं ऐसे, कागज़ को खोलते, दुबारा बनाते| हर बच्चा अपनी नाव बनाने में इस तरह डूबा था जैसे उन्हें अभी के अभी उसकी सवारी करनी हो| जब सबकी नाव तैयार हो गई तो मैंने बच्चों के साथ मिलकर एक रस्सी में सारे नावों को पिरो दिया और लाइब्रेरी में एक नोटिस बोर्ड पर लगा दिया| अपने नाव को नोटिस बोर्ड पर टंगा देख बच्चें इतने खुश थे कि उस दृश्य की शायद मैं वर्णन नहीं कर सकती|
मुझे बहुत आश्चर्य होता है इन बच्चों की कहानी में रूचि देख कर| मुझे याद है वो दिन जब मैं पहली बार इन बच्चों से मिली थी, करीबन चार महीने पहले, तब ऐसा लगा था कि शायद मैं इनकी दिलचस्पी कभी किताबों में न जगा पाऊं| दूर-दूर तक कहानियों और किताबों से इनका कोई वास्ता न था| पर शायद मैंने ही कहानियों और किताबों की ताकत को कम कर के आंका था| कहानियों और किताबों ने अपना जादू कर ही दिया और आज ये हाल कि ये बच्चें लाइब्रेरी से जाना ही नहीं चाहते|
When ‘Jamlo Walks’ with Children
Chandrika Kumar, …yr old, from a village in Okra, Khunti district of Jharkhand, shared her response after listening to ‘Jamlo Walks’…
Flyaway Boy is a story about a boy who doesn’t fit in – not in his school, among friends and sometimes even struggles to feel part of his family…