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मैं लाइब्रेरी एजुकेटर्स कोर्स से वर्ष 2017 में बतौर प्रतिभागी जुड़ी थी। इस कोर्स को अंतराल और संपर्क अवधियों के मिश्रित रुप में विकसित किया गया है। कोर्स का ज्यादा समय डिस्टेन्स मोड में होने के बावजूद इसकी बुनावट इतनी सहज है कि यह आभास ही नहीं होता कि हम एक डिस्टेंस कोर्स से जुड़े हैं। कोर्स में हम दो संपर्क कक्षाओं के बीच के समय में पठन सामग्री व मूडल चर्चाओं के माध्यम से जुड़े रहते हैं। इस बीच यदि कोई प्रश्न या दुविधा हो तो उसके लिए मेंटर्स भी उपलब्ध होते हैं। डिस्टेंस पीरियड के दौरान मेंटर्स एक पुल की तरह कार्य करते हैं और प्रतिभागियों को कोर्स से जोड़े रखते हैं। कोर्स में सैद्धांतिक और प्रयोगिक दोनों ही स्तर पर काम किया जाता है। असाइनमेंट व फील्ड प्रोजेक्ट में भी ये दोनों तत्व समाहित होते हैं। जो प्रतिभागी सीधे फील्ड में बच्चों के साथ जुड़कर काम करते हैं उनके कुछ ख़ास तरह के अनुभव होते हैं तो किसी प्रतिभागी सैद्धांतिक समझ मजबूत होती है। मेंटरिंग के दौरान हेमने प्रतिभागियों के इन पक्षों को समझने के बराबर मौके मिलते हैं। इस स्थिति में हम प्रतिभागियों के ज्ञान को भी आपस में साझा करते हैं। साथ ही हमारी खुद की समझ भी मजबूत होते चलती है। साथ साथ हम कोर्स से जुड़े प्रतिभागियों के कोर्स गतिविधियों पर नज़र रखते हुए कि वे मूडल चर्चाओं में जुड़ रहे हैं या नहीं, समय से असाइनमेंट लिखना शुरू करें इसके लिए उनको प्रोत्साहित करते हैं।

मेंटर्स को कोर्स के प्रत्येक प्रतिभागी की क्षमताओं को जानने परखने और उनसे व्यकितगत रूप से जुड़ने के पर्याप्त अवसर रहता है। कोर्स के दौरान असाइनमेंट व फील्ड प्रोजेक्ट कार्यों में मुझे लगातार मेंटर का मार्गदर्शन मिला। मुझे अपनी उलझने बड़े समूह में पूछने से असहजता होती थी पर उन्ही सब बातों पर मैं अपनी मेंटर से काफी सहजता से चर्चा कर पाती थी। असाइनमेंट व फील्ड प्रोजेक्ट के अलावा भी किसी ख़ास आलेख या पुस्तकालय कार्यों से जुड़ी चर्चाएँ भी हुईं। हम कोर्स से जो भी सीखे है उसे अपने काम में कैसे जोड़ पा रहें इस तरह के संवाद मुझे अपने काम को और बेहतर करने का प्रोत्साहन भी देते थे।

चूँकि मैं भोपाल मैं ही रहती हूँ जहाँ कोर्स की कार्यशालाएं संचालित की जाती हैं तो कोर्स ख़त्म होने के बाद भी मैं कोर्स से जुड़ी रही। कभी अपने द्वारा किये गए फील्ड कार्य को नए प्रतिभागियों से साझा करने के लिए कभी किसी गतिविधि के माध्यम से। इस ही क्रम में 2019 से मैं एक मेंटर के तौर पर इस कोर्स से जुड़ी हूँ। इस प्रकार मेरे मेंटीज़ और मेंटर दोनों ही होने के बहुत अच्छे अनुभव रहें हैं।

एक मेंटी रहते हुए मैंने जो सीखा वही अपने मेंटीज़ के साथ बांटने के प्रयास होते हैं। डिस्टेंस अवधि में हम लगातार अपने मेंटीज़ से संपर्क बनाए रखते हैं। बातचीत के ज़रिये हम अपने मेंटीज़ को उनके काम के साथ साथ व्यक्तिगत रूप से भी समझने के प्रयास करते है। चूँकि यह एक व्यावसायिक विकास कोर्स है इसमें जुड़े सभी प्रतिभागी दोहरी भूमिका में होते हैं वे खुद सीखने के साथ जो सीखा है उसे क्रियान्वित करने की भूमिका में भी होते हैं। एक मेंटर होते हुए हम कोशिश करते हैं कि मेंटीज़ इन दोनों भूमिकाओं में समन्वय स्थापित कर पायें। जिससे की कोर्स उन्हें अतिरिक्त भार न लगकर काम का ही हिस्सा या प्रशिक्षणनुमा महसूस हो।

स्वीडिश रचनाओं का गुलदस्ता: खुल जा सिम सिम

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पिछले महीने मैं उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में अपने काम के सिलसिले में गया था। एक सरकारी विद्यालय की लाइब्रेरी में एक मज़ेदार किताब मेरे हाथ लगी..

Navnit Nirav Parag Reads 27 December 2019

गिजुभाई के ख़जाने से आती गुजराती लोक कथाओं की खुशबू

गिजुभाई के ख़जाने से आती गुजराती लोक कथाओं की खुशबू

शिल्प और कथन के हिसाब से देखा जाय तो लोक-कथाएँ सम्पूर्ण जान पड़ती हैं। इन कहानियों को पहली पीढ़ी ने दूसरी पीढ़ी को, दूसरी ने तीसरी, तीसरी ने चौथी को सुनाया होगा…

Navnit Nirav Parag Reads 13 December 2019