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प्रभात : कविता लिखने की इच्छा तो हमेशा ही रहती है. कविता को लेकर विचार करना, पढ़ना चलता रहता है. जीवन का कोई अवलोकन या कोई अनुभव ही लिखने को प्रेरित कर देता है, उसकी भाषा बनने लगती है एक पल आता है कि अब इसे लिख लेना चाहिए तो लिख लेता हूँ. कई बार लिखने के लिए बात मन में कौंध जाती है लेकिन परिस्थिति ऐसी होती है कि तुरत लिखना संभव नहीं होता. जैसे कि मान लीजिये मैं किसी ट्रेनिंग में हूं या यात्रा में हूँ या कहीं घूम रहा हूँ और उस वक्त कागज़ पेन या कंप्यूटर डेस्क पास नहीं है. फिर उस विचार या भाषा को केवल स्मृति के सहारे वापस पाना मुश्किल हो जाता है. कई बार कोई चीज़ आधी अधूरी सी लिखी जाती है बहुत दिनों बाद उसे सम्पादित किया जाता है. इस प्रक्रिया में कविता बन भी जाती और कभी बिखर भी जाती है.

कविता भावावेग से भी बनती है. लेकिन केवल भावावेग के सहारे कविता नहीं लिखी जा सकती. नया लिखने के लिए लेखन की परम्परा का ज्ञान, दुनिया भर में क्या लिखा जा रहा है उसकी जानकारी और अनवरत अभ्यास इन सब बातों की भूमिका रहती है.

Q: प्रकाशन का सिलसिला कब और कैसे शुरू हुआ ?

प्रभात : मेरी पहली कविता जब मैं ग्यारहवीं क्लास में पढता था तब एक पत्रिका में छपी थी, फिर अखबारों और पत्रिकाओं में कविता लिखकर भेजने का सिलसिला शुरू हो गया. लिखी हुई कविता जब प्रकाशित होकर आती तो उससे एक तरह की ख़ुशी मिलती थी. एक तो लिखने का सुख फिर छपने का सुख. लिखते छपते हुए दो दशकों से अधिक समय के बाद अब केवल लिखने का ही सुख महसूस होता है. छपने की भूख अब नहीं रही.

Q: क्या प्रकाशित करने का कुछ नियमित काम है ?

प्रभात : अखबार और पत्रिकाएं लगातार रचनाएँ मांगते रहते हैं मैं भेजता रहता हूँ और छपता रहता है. अब ऐसा है कि मांग जितनी है उतना मैं लिख नहीं पाता हूँ. किताब प्रकाशित होना एक अलग मसला है. लेखन कार्यशालाओं में लिखी कई किताबें प्रकाशित हुई हैं. मेरी अब तक जितनी भी किताबें प्रकाशित हुई है वह प्रकाशकों द्वारा मांगे जाने पर ही छपी हैं. मैंने अपनी पहल से किसी प्रकाशक को कभी अप्रोच नहीं किया है, यही वजह है कई किताबों का मैटर मेरे पास पड़ा है, लेकिन वह किताब के रूप में सामने नहीं आया है.

Q: आपको किन कवियों/लेखकों ने प्रभावित किया? कुछ बताएं?

प्रभात : तीन से सोलह वर्ष की उम्र के पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर कहना हो तो प्रेमचंद, विजयदान देथा, टॉलस्टॉय, चेखव, लुइ कैरोल आदि अनेक लेखक मुझे प्रिय रहे है. और कवियों में निरंकार देव सेवक, दामोदर अग्रवाल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सफ़दर हाश्मी, गुलज़ार, नवीन सागर, सुशील शुक्ल आदि मुझे प्रिय रहे हैं. लोक में मौजूद मौखिक साहित्य भी मुझे विशेष प्रिय रहा है.

Q: क्या आप सोशल मीडिया पर हैं और क्या यह आपके काम को प्रभावित करता है?

प्रभात : कुछ महीनों पहले तक मैं फेसबुक पर था अब नहीं हूँ, अब मैं केवल कुछ ब्लॉग सबद, समालोचन, हाशिया आदि देखता हूँ. फेसबुक जितना देता था उससे अधिक समय बर्बाद करता था.

Q: आपकी कविताओं में कोई ऐसी कविता जो आपको पसंद हो और उसके पीछे प्रेरणा क्या रही?

प्रभात : मैंने इतना कम नहीं लिखा है कि एक या कुछ ही कविताओं को पसंद कर सकूं. लिखने के पीछे प्रेरणा लिखने की चाहत का होना ही होती है. अभिव्यक्ति का सुख भी प्रेरणा बनता है. बंजारा नमक लाया, पेड़ों की अम्मां, छींक आदि बहुत सी कवितायेँ हैं. हर कविता अपनी किसी अलग विशेषता के लिए पसंद आती है जैसे एक छोटी सी कविता है- आओ भाई खिल्लू, अभी तो की थी मिल्लू, भरा नहीं क्या दिल्लू. अब यह बच्चों की एक दूसरे से मिलने की कभी ख़त्म न होने वाली इच्छा को बच्चों के स्वभाव के अनुकूल भाषा में कहती है सो अच्छी लगती है.

Q: आजकल आप क्या पढ़ रहे हैं?

प्रभात : अरविन्द गुप्ता की वेबसाईट पर कुछ किताबें पढ़ी थीं, अरुण कमल की कविता प्रलय पढ़ी है. और भर्तृहरि की कुछ कविताओं का अनुवाद कवि राजेश जोशी ने किया था वह किताब पढने को रखी है.

Q: आजकल क्या आप कुछ लिख रहे हैं ?

प्रभात : कुछ कवितायेँ इधर लिखी हैं जो माटी पत्रिका में आएँगी. फिरकी बच्चों की, प्लूटो पत्रिका के लिए भी कुछ कवितायेँ लिखी हैं.

Q: उभरते कवियों के लिए आपका क्या सुझाव/सन्देश होगा?

प्रभात : वही जो विजयदान देथा ने एक मुलाकात में कहा था- मन भर पढो तो कण भर लिखो. या हरिवंश राय बच्चन ने कहीं कहा है- हजार पंक्तियाँ पढो तो एक पंक्ति लिखो. यह अनुपात रहना चाहिए. पर यह कोई नियम नहीं. बहुत सारा पढ़ लेना भर पर्याप्त नहीं है. सबसे जरूरी है जीवन की महसूसियत. जीवन को पढ़ना सबसे जरूरी है. कबीर कह गए हैं पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोय. इसी के सामानांतर अल्लामा इकबाल का एक शेर है- हज़ारों साल नर्गिश अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा. दीदावर होना एक अलग ही बात है. मैं खुद अभी उभर नहीं पाया हूं सो उभरते कवियों को क्या सन्देश दूंगा? कोई सन्देश नहीं है. सबको अपनी राह खुद बनानी होती है. लिखने में लीक पीटना ही सबसे खराब बात है. उसके लिए दुनियादारी की लीक से हटकर चलना ही चलना पड़ता है. बकौल कबीर साहब- सिंहों के नहीं लेहड़े, हंसों की नहीं पांत, लालों की नहीं बोरियां, साधू न चले जमात. ऐसी चाल कवियों को चाहिए होती है. अपनी भाषा, अपना मुहावरा पाने में जीवन लग जाता है, पठार सा धीरज चाहिए होता है. अब के समय में सबको रफ़्तार पसंद है, मेरी एक कहानी है – रफ़्तार खान का स्कूटर, रफ़्तार की बहुत चाहत कवियों के जानलेवा साबित हो सकती है. मुझे धीरे चलना पसंद है.

BLBA 2017 Award Ceremony

The Big Little Book Awardees 2017, Proiti Roy (Illustrator) and Nabaneeta Dev Sen (Author) receive their awards at Tata Lit Live! The Mumbai Litfest.

NCPA, Mumbai BLBA NOV 19, 2017