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जसिंता की डायरी

जसिंता की डायरी में झारखंड और ओडिशा के आदिवासियों के संग बिताए गए उनके अनुभव और उनकी कुछ कविताएँ संकलित हैं। जसिंथा स्वयं एक आदिवासी परिवार से हैं। शायद इसलिए उनके वर्णन में खास यह है कि हमें आदिवासी जीवन का एक ‘इन्साइडर व्यू’ देखने को मिलता है। उनके जीवन के कई पहलुओं का वह बड़े अपनेपन से वर्णन करती हैं। परंतु इसके साथ ही इस खूबसूरत जीवन के निरंतर होते विध्वंस के दर्द का स्वर लगातार सुनाई देता है। इसके बावजूद जसिंथा ने इंसानियत पर अपने गहरे भरोसे को बचाकर रखा है क्योंकि वह मानती हैं कि इस दुनिया को सिर्फ़ प्रेम ही बचा कर रख सकता है।

इकतारा, जुगनू प्रकाशन 2023 जसिंता केरकट्टा प्रिया कुरियन

ओ पेड़ रंगरेज़

इस क़िताब में आपको चित्रों में कवितायेँ और कविताओं में चित्र मिलेंगे। यह तो हम जानते हैं कि पेड़ कितने ज़रूरी हैं पर शायद पेड़ों को रंगरेज़ की तरह न देखा हो। यह किताब प्रकृति का ‘शेड कार्ड’ है। बसंत में कचनार, जकरन्दा और सिल्क फ्लॉस से रंगी जमीन की याद दिलाती है। हर रंग से पहले सुशील शुक्ल की कविताएँ प्रकृति को और करीब ले आती हैं। सड़क और घर के दीवारों पर फैले बोगनविलिया से रिश्ता ही बदल जाता है। फूलों और फलों से रंग बनाने की विधि काफ़ी स्पष्ट है और आपको प्रयोग करने के लिए आमंत्रित ज़रूर करेगी।

एकलव्य 2022 कनक शशि कनक शशि

ऊपर के गाँव का रहस्य

हमारे गाँव में रामलीला क्यों नहीं होती? इतनी दूर ठंड में किसी और गाँव में क्यों जाना पड़ता है रामलीला देखने? नौ साल की गोपु को अपनी इस सहज जिज्ञासा का कोई सीधा जवाब अपने बड़ों से नहीं मिलता। बस यही जानने की धुन में वह तरह-तरह से लोगों से बात निकलवाने का प्रयास करती रहती है, कभी अपने पुलिस पापा को मस्खा लगाती है तो कभी अपने दोस्त के साथ छानबीन में लग जाती है। गोपु और उसके पापा के बीच का बेकल्लुफ़ रिश्ता, दादी और अन्य किरदार और उत्तराखंड के गाँव के जीवन का जीवंत चित्रण इस लघु उपन्यास को और भी दिलचस्प बनाता है।

इकतारा, जुगनू प्रकाशन 2023 नेहा बहुगुणा सुस्नता पॉल

चिड़िया उड़

यह एक छोटे बच्चे की कहानी है जो मानता है कि वह एक चिड़िया है। वह उड़ना चाहता है लेकिन चाहकर भी वह इसे बता नहीं पाता। उसे उम्मीद है कि शायद उसे पहचान लेंगे पर वह हर बार नाउम्मीद होता है। लेकिन बोल नहीं पाता। निधि दृश्यों के सहारे कहानी उकेरती हैं और बता न पाने की घुटन और पहचान न पाने की कसक हमें भीतर तक महसूस कराती हैं। ‘चिड़िया उड़’ उन सभी की कहानी है जो अपने ‘आसमान’ में उड़ने के लिए आज़ाद नहीं थे और उनकी भी है जो यह पहचान न पाए।

इकतारा, जुगनू प्रकाशन 2023 निधि सक्सेना तापोशी घोषाल

क़ुतुबमीनार का पेड़

क्या आपको पता था कि कभी कौआ क़ुतुब मीनार को अपनी साइकिल पर लाद ले गया था? या कि जब पापा को डॉक्टर के पास जाना पड़ा था तो क्या ग़ज़ब हुआ था? यह कहानी संकलन गुदगुदाता भी है और लोकजीवन की झलकियाँ भी देता है। भाषा का कमाल, शब्दों का खेल और संवाद गठे हुए तथा नुकीले हैं। इसके चित्र रंग बिरंगे हैं और कहानियों को ठोस या मूर्त बनाने में मदद करते हैं। चित्रों में कहानियों जैसी गतिशीलता है।

इकतारा, जुगनू प्रकाशन 2023 प्रभात कविता सिंह काले

रेगिस्तान में बस

अनेक विषयों, वस्तुओं पर रची गयीं कविताओं का यह गुच्छा शिशु गीतों की तरह सरल और सम्मोहक है। यहाँ हाट और गुड़ से लेकर बकरिय़ाँ, शेर और रेगिस्तान भी हैं। कल्पना की उड़ान और कौतुक से सम्पन्न इनकी भाषा का अपना मजा है। ये कविताएँ प्रत्येक वस्तु, जीव और व्यक्ति को नयी नजर से देखने व समझने को आमंत्रित करती हैं, जैसे गाँधी जी और मक़बूल फ़िदा हुसैन पर लिखी कविताएँ, और हमें जीवन की विविधता तथा बहुलता में ले जाती है। चटख रंगों और चौड़ी कूँची वाले चित्र कविता को भित्ति-चित्र की भाँति रूपायित करते हैं।

इकतारा, जुगनू प्रकाशन 2023 प्रभात ऋषि सहानी

रफ्फू की जलेबी

केवल एक कविता से बनी यह पुस्तक जलेबी का गुणगान है। जलेबियों के पारने, छानने, रस में पगने, दोने में परोसे जाने और फिर मुँह में डलने तक का पूरा क़िस्सा मज़ेदार पदों में दिया गया है। साथ ही जलेबियाँ बनाने वाले रफ्फू भाई की महिमा का बखान भी है। बोलचाल की मुहावरेदार भाषा और रसभरे चक्करदार वाक्यों की अद्भुत मिठास विरल घटना है। पूरे वातावरण को ख़ुशनुमा बनाते रंग और रेखांकन देखते ही बनते है। यह कविता जलेबियों के बहाने जीवन की छोटी छोटी बातों और खुशियों का शानदार उत्सव है।

एकलव्य 2023 सुशील शुक्ल प्रशांत सोनी

नीम तेरी निम्बोली पीली

सबसे अलग लगने वाली यह कविता नीम से एक प्यारी दोस्ताना बातचीत है। इस कविता का अंदाज और बिम्ब, दोनों ही इसे अनूठी बना देते हैं। गीली धूप, पश्मीना फूल, और शोख़ी डाल सरीखे पद, देखने का अंदाज ही बदल देते हैं। यह कविता नीम के पूरे पेड़ की कविता है। नीम के फूल, डाल, पत्ते, निंबोली और छाया तक के बारे में एक साथ। नीम को इतने प्यार और अपनेपन से कम देखा गया होगा। भाषा इतनी आसान कि कविता तुरंत कंठस्थ हो जाती है| चित्रों के रंग नीम के शरीर के हर रंग तथा स्वभाव को जीवंत कर देते हैं।

एकलव्य 2022 सुशील शुक्ल वसुंधरा अरोड़ा

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