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किताब का नाम – दबंग गाय हमारी 
लेखक – महाश्वेता देवी
अनुवाद- सुषमा रौशन
चित्र – रूचि शाह
प्रकाशक – तूलिका

लाइब्रेरी एडुकेटर्स कोर्स संपर्क अवधि के दौरान बुक टॉक पर सत्र के दौरान अजा जी ने “दबंग गाय हमारी” किताब के बारे में बताया था | तब पहली बार मैं इस किताब से परिचित हुई और सुनकर ही मन में इस किताब को पढ़ लेने की इच्छा हुई| उस ही दिन स्वतंत्र पठन के सत्र में मैंने इस किताब को पढ़ा और इसे पढ़कर मुझे बहुत मज़ा आया| कहानी की दबंग गाय ‘न्यदोश’, के कारनामों को पढ़कर गाय से जुड़े  कुछ अनुभव फिर से मेरी आँखों के सामने चित्रित हो गए|

पहले जब कहानी में जिक्र होता है कि न्यदोश घर के बच्चों की कितबों के साथ साथ कपड़े भी खा जाती थी| ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ था बचपन में| मैं अपने मामा के घर गई थी और मेरी फ्रॉक जो आँगन में सूखने डाली थी उसे गाय चबा गई थी और इतनी बुरी तरह चाबाई थी कि फ्रॉक पहनने लायक नहीं बची थी|

संपर्क अवधि के बाद जब मैं वापस पहुंची तो मैंने कई किताबे हमारे पुस्तकालयों के लिए मंगवाई जिसमें “दबंग गाय हमारी” किताब का नाम सबसे उपर था| मैंने जब बच्चों के साथ इस कहानी को साझा किया तो उन्होंने भी कई दिलचस्प किस्से सुनाये|

कहानी की विषयवस्तू “एक गाय की विशिष्ट जीवन शैली” इसे अपने आप में ख़ास बनाती है| अक्सर ही हम जब गाय की कल्पना करते हैं तो एक सीधा सा पालतू पशु हमारी आँखों में उभरता है| पर कहानी में दरशाया गया एक गाय के जीवन का खास घटनाक्रम जो थोडा हटके है इसे मजेदार बनता है|

न्यदोश के इतना नुकसान करने के बाद भी किसी ने उसे कभी मारा पीटा नहीं, उसकी हर मनमानी को ऐसे स्वीकार किया जैसे कि घर का कोई जिद्दी बुजुर्ग हो|  गाय को एक पशु की तरह न दिखाकर परिवार के एक सदस्य की तरह दिखाया है ये बात मन को छू जाती |

कहानी की भाषा सरल है कुछ बंगाली नाम है जो बांग्ला भाषा की झलक दिखाते है| चूँकि ये कहानी एक बंगाली  परिवेश से चुनी गई है इसलिए कहानी के ये तत्व कहानी को जीवंत बनाते हैं| कहानी में प्रोयग किये कुछ व्यंगात्मक वाक्य “एक ही कारण था की वह कभी कुछ लिख नहीं पाई, क्योंकि उसने कोई कलम नहीं खाई” लेखन की सुन्दरता को दोगुना कर देते हैं|

कहानी तो अच्छी है ही और इसके चित्र भी एक दम अनूठे हैं जैसे कपड़ों से बना गाय का चित्र या मछलियों को इस अंदाज में जमाना की एक गाय की आकृति बनती है| कपडे, सब्जी,प्याज़, किताबें  न्यदोश जो खाती है उनसे चित्र बनाया गया है | न्यदोश को रंगीन और बड़े आकार में और बाकि घटनाक्रम को काले सफेद रंग में छोटे आकार में बनाया गया है जो की हर पृष्ट पर कहानी की विषय वस्तु को केन्द्रित रखता है|

कुल मिलाकर यह एक अच्छी कहानी है और हर किसी को इसे एक बार जरुर पढ़ना चाहिए| 

स्वीडिश रचनाओं का गुलदस्ता: खुल जा सिम सिम

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पिछले महीने मैं उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में अपने काम के सिलसिले में गया था। एक सरकारी विद्यालय की लाइब्रेरी में एक मज़ेदार किताब मेरे हाथ लगी..

Navnit Nirav Parag Reads 27 December 2019

गिजुभाई के ख़जाने से आती गुजराती लोक कथाओं की खुशबू

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शिल्प और कथन के हिसाब से देखा जाय तो लोक-कथाएँ सम्पूर्ण जान पड़ती हैं। इन कहानियों को पहली पीढ़ी ने दूसरी पीढ़ी को, दूसरी ने तीसरी, तीसरी ने चौथी को सुनाया होगा…

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