Loading...


किताब का नाम: चश्मा नया है
चित्र: शुभम लखेरा
प्रकाशक: एकलव्य
पृष्ठ: 55
मूल्य: 75 रूपये

बच्चों के भीतर झाँकने की एक खिड़की हैं ये किस्से। और नए चश्मे से देखेंगे तो और भी बहुत कुछ नज़र आएगा।

बच्चों के लिए बहुत सारी कहानियाँ बनती हैं, लिखी जाती हैं और कई उन्हें सुनाई भी जाती हैं। हमारा प्रयास होता है कि बच्चे इन कहानियों को पढ़ें, सुने और उसका आनंद उठाएँ। “चश्मा नया है” इसी प्रयास में एक अगला कदम है क्योंकि यह बच्चों की रचनाओं का एक संकलन है। यह किताब बच्चों द्वारा लिखी गयी कहानियों और पत्र से भरा पड़ी है। इन कहानियों में बच्चों का बचपन झलकता है, उनका लड़कपन अटखेलियाँ करता है और अपने कई मासूम सवालों से वे आपको अचंभित भी कर देते हैं।

इसमें विविध प्रकार की कहानियाँ हैं। कहीं मछलियाँ हवा से बातें कर रही हैं, कही आँखों में काजल का पहला अनुभव बताया जा रहा है तो कहीं एक पुत्री पिता को ख़त लिखकर अपनी ख़्वाहिशों का इज़हार कर रही है। इस किताब की मेरी सबसे पसंदीदा कहानी ” रमज़ान का पहला दिन ” है। मैंने पहली बार ऐसी कोई कहानी पढ़ी जहाँ विस्तार और सरलता से रमज़ान के पहले दिन की व्याख्या की गयी हो। कहानियों के बीच में कहीं कहीं रंग– बिरंगे चित्र दिए गए हैं जो कहानी के भाव को भली– भांति अभिव्यक्त करते हैं। इस किताब की एक खास बात यह है कि इन कहानियों को पढ़ते समय ऐसा लगता है कि हम कहानी पढ़ नहीं, उन बच्चों को सुन रहे हैं। उनकी सोच, उनकी भावनाएं और उनके संघर्ष साक्षात सामने आकर बातचीत करने लगते हैं।

आजकल की भाग– दौड़ भरी ज़िन्दगी में बच्चों को बहुत कम अपनी बात कहने और बड़ों को उनकी बात सुनने का मौका मिलता है। बच्चों को अलग– अलग प्रकार की गतिविधियों में व्यस्त रखने का चलन बढ़ता ही जा रहा है। और इसी को हम आधुनिक शिक्षा का चोंगा पहनाकर संतुष्ट हो लेते हैं। बच्चों की बातें उन तक ही रह कर कहीं दब सी जाती हैं। फिर यही दबी बातें दबते – दबते कहीं गुम सी हो जाती हैं। इसलिए ऐसे प्रयास जहाँ बच्चों को अपनी भावनाओं, प्रश्नों सोच, विचार आदि को व्यक्त करने का माध्यम मिले, एक अनूठा प्रयास बन जाता है।

इन्हीं कारणों से “चश्मा नया है ” की रचनाओं का मोल और भी बढ़ जाता है और यह प्रयास सराहनीय है। जहाँ बच्चों की हाथों में टी. वी. रिमोट और वीडियो गेम न होकर एक कलम हो, इससे बेहतर उम्मीद की और क्या बात हो सकती है।

आशा है आपको भी इसे पढ़ने में वही आनंद मिलेगा जो मुझे मिला।

नानी चली टहलने

नानी चली टहलने

दीपा बलसावर द्वारा लिखी कहानी “नानी चली टहलने” बच्चों को समाज के उन पहलुओं से रु-ब-रु कराती है जहाँ हमारा सम्बन्ध केवल इंसानो से ही नहीं बल्कि पशु -पक्षी, जानवरों और पेड़-पौधों से भी है, और नानी द्वारा इनके बीच के आपसी स्नेह के रिश्ते को बहुत ही खूबसूरती से बताया गया है…

Chitra Singh Parag Reads 30 July 2019

Libary Educators Course 2014 concluded

Niju Mohan Library Educator's Course 8 May 2014